Add To collaction

लेखनी प्रतियोगिता -19-Jun-2022 खिलौना


शीर्षक  = खिलौना


शाम  हो चुकी थी । आसिया  अपने घर में अपने दस साल के बेटे तोसीफ के साथ  अपने शोहर  अरबाज़ के आने का इंतज़ार  कर  रही  थी  जो की एक दिहाड़ी दार मजदूर हे और एक बनये की दुकान पर  काम करता  हे । वैसे तो वो 6 बजे  तक  आ जाता था  लेकिन आज  8 बज गए  थे लेकिन उसका पता  नहीं था  अभी तक।

आसिया के बेटा पिछले  कुछ  दिनों से एक खिलोने  की ज़िद्द कर  रहा  था  जो की उसकी पसंदीदा  साइकिल थी । लेकिन उसके बाप के इतने अच्छे हालात नहीं थे  की वो उसे नयी या पुरानी साइकिल दिलवा सके  पहले  तो कुछ  बच  जाता था  लेकिन अब इतनी मेहंगाई में घर की दाल रोटी चल  जाए वही बहुत  हे ।

और अगर घर  किराय का हो तो जेब में कुछ  नहीं बचता । ये बात बढ़ो को तो पता  होती हे  किन्तु 10 साल के बच्चे को क्या पता  की मेहंगाई किस डायन  का नाम हे । वो तो अपने माता पिता से अपनी ख्वाहिशों का इज़हार करते  हे  जब  उनके साथ  के बच्चों के पास वो चीज  हो जो उन्हें पसंद  हो तो वो अक्सर उस चीज  को पाने की हट  कर  बैठते  हे ।


अब तो वो ज़माना  भी नहीं रहा  जब  बच्चा  चाँद को छूने की ज़िद्द करता  तो माँ पानी में उसकी परछाई दिखा  कर  बच्चे को बेहला देती लेकिन आज  कल के बच्चे भी बहुत  समझदार हे  वो अब इस तरह  के छल में नहीं आते  आसानी  से।


तोसीफ  भी  उन्ही में से एक था  जो जिद्द पकड़  कर  बैठ  गया  था  साइकिल लेने की। उसी के पैसे जुटाने के लिए  अरबाज़ दुकान पर  ओवरटाइम कर  रहा  था  क्यूंकि औलाद  की ख्वाहिश पूरी करने  के लिए  माता पिता जी  तोड़ मेहनत  करते हे।


आसिया ने अपने बेटे को समझाया  की वो उसे अभी  साइकिल नहीं दिला सकते  क्यूंकि उनके पास पैसे नहीं हे लेकिन तोसीफ  जिद्द कर  बैठा और खाना पीना  छोड़  दिया था  एक दिन पहले । अब जिसकी औलाद  भूखी हो उसके माता पिता कैसे सुकून का निवाला अपने हलक से नीचे उतार सकते हे ।

अभी इतने पैसे भी नहीं हुए थे  की वो एक साइकिल दिलवा सके ।

आसिया  दरवाज़े की और देखती  और कहती  " ना जाने कहा रह  गए  आज  तुम्हारे अब्बू जरूर  तुम्हारी साइकिल के लिए  ही पैसे जमा करने में लगे होंगे "

तोसीफ  कुछ  कहता  तभी  दरवाज़े पर  दस्तक  होती आसिया  जाकर दरवाज़ा  खोलती  तो देखती  उसका शोहर  की हालत ख़राब थी  उसके सर पर पट्टीया बंधी हुयी थी  और वो लंगड़ा  कर  चल रहा  था ।

आसिया  घबरा  गयी  और बोली " ये सब  कैसे हुआ, कही आपका  एक्सीडेंट तो नहीं हो गया  "

अरबाज़ चेहरे पर  हलकी मुस्कान लिए  अपनी जेब से पैसे निकालता और कहता  " ये लो मिल गए  पैसे अब हम  कल  जाकर अपने बेटे का पसंदीदा  खिलौना  उसकी साइकिल खरीद  कर  लाएंगे  "

"इतने सारे पैसे पर आये  कहा से, कही  आपने कोई गलत  काम तो नहीं करा  हे  " आसिया  ने कहा

"नहीं नही डरो मत , बस  ये पैसे अपने पास रखो और तोसीफ  को खाना  खिलाओ  कल रात से कुछ  नही खाया  उसने मैं कमरे में जाकर थोड़ा  आराम  करता  हूँ " अरबाज़ ने कहा और कमरे  की और जाने लगा .

तभी  तोसीफ  वहा  आया और बोला " पापा आपको क्या हुआ ये चोट  केसी "

"कुछ  नही बेटा तुम अब पेट भर  के खाना  खाओ , मेने पैसे तुम्हारी अम्मी को दे दिए  हे  कल जाकर साइकिल ले आएंगे , अभी  रात हो चुकी हे  " अरबाज़ ने कहा

ये सुन तोसीफ  के चेहरे  पर ख़ुशी  छलक आयी  जिसे देख  अरबाज़ भी  खुश  हो गया  और हस्ते हुए  लंगड़ाते हुए  कमरे  की और जाने लगा ।

आसिया ने तोसीफ  को खाना  खिलाया  और सुलाने चली गयी । उसके बाद वो एक प्लेट में अपने और अरबाज़ के लिए खाना  लायी तो देखा  अरबाज़ अपने ज़ख्मो पर मरहम  लगा  रहा  था ।

उसने आकर  मरहम अपने हाथ  में लिया और उसकी पीठ पर मलने लगी  और बोली " सच  सच  बताइये  आपको चोट  कैसे लगी  मुझसे झूठ मत  बोलना, क्यूंकि इतने सारे पैसे आपको कौन दे सकता  हे  जरूर  आपने  कही  से चुराय हे  जिसकी वजह  से आपकी ये हालत हुयी हे , लेकिन क्यू "

"नही नही आसिया  ऐसा कुछ  नही हे  वो तो बस  समान  उठाते समय  पैर फिसल  गया  था  मेरा और मैं गिर गया  था  तो चोट लग  गयी ये पैसे तो मेने किसी से उधार लिए हे  जो किस्तों पर  लोटा दूंगा  " अरबाज़ ने कहा

"आप झूठ बोल रहे हे , अगर आपको उधार  ही लेना थे  तो आप  पहले ही ले लेते यूं इस तरह  अपने बच्चें को रोता बिलकता नही देखते सच सच  बताइये  आपने  उसकी ज़िद्द को पूरा  करने के लिए  क्या करा  था  जो आप जख़्मी हो गए  " आसिया  ने कहा

"क्या कर  सकता  था मैं अपनी औलाद  को खुश  देखने  के लिए , कुछ  भी तो नही कर  सकता  मैं तुम्हारे और हमारे  बच्चे  के लिए । जो कुछ  कमाता  हूँ वो तो सब  घर  की दाल रोटी में ही खर्च  हो जाता हे  एक दिहाड़ी दार बाप अपने बच्चे  को गुरबत  के सिवा दे ही क्या सकता  हे , अब भी  बेटे ने एक रात खाना  नही खाया  तब  जाकर उसकी साइकिल के लिए  पैसे जुटा पाया। और तुम्हे एक नया  कपड़ा  भी नही दिलवा पाया "अरबाज़ ने रोते हुए कहा

"आपका  सहारा  और साथ  ही मेरे और मेरे बच्चे के लिए काफी हे , और मुझे  कुछ  नही चाहिए  आप  से जितनी भी  कोशिश  होती हे  हमें खुश  रखने  की आप  वो करते  हो और हमें क्या चाहिए ,आप मुझे  सच  सच  बताइये  की वो पैसे कहा से आये  और आपको चोट कैसे लगी  वरना  मैं आपसे  नाराज़ हो जाउंगी " आसिया  ने कहा

अरबाज़ खामोश  था  उसकी आँखों में आंसू थे  उसने अपनी बीवी की तरफ  देखा  और कहा "मेने सिर्फ वही क्या जो एक पिता को अपनी औलाद  के लिए  करना  चाहिए  और मेरी नज़र में वो सही  था । एक हफ्ता हो गया था  मुझे  ओवरटाइम  करते  करते लेकिन इतने पैसे नही जुटा पाया की बेटे को नयी या पुरानी साइकिल दिलवा सकूँ जो उसका पसंदीदा  खिलौना  हे। मुझे  एक बाप होने में शर्म  होने लगी  थी  जब  अपने बच्चे की ख्वाहिश को यूं इस तरह  मरते देखता  रोज़, रोज़ घर  आकर  उसका उदास चेहरा  देखता  तो सोचता  की मैं केसा बाप हूँ अपने बच्चे  को एक खिलौना  भी नही दिलवा सकता  हूँ, बाप तो औलाद  की ख़ुशी के लिए  ना जाने क्या क्या कर गुज़रते हे  और मैं एक छोटी सी साइकिल भी खरीदने की हैसियत  नही रखता  हूँ।

कल रात जब  तोसीफ  ने खाना  नही खाया  और जिद्द पकड़  कर  बैठ  गया  की जब  तक  उसको उसका खिलौना  नही मिलेगा वो खाना  नही खायेगा । कल  रात सिर्फ उसने ही नही मेने भी  खाना  नही खाया  और सुबह होने का इंतज़ार करने लगा ।

दुकान मालिक से कुछ  पैसे उधार  मांगे लेकिन उसने देने से मना कर  दिए । मैं लाचार  पिता कहा कहा पैसे की गुहार लेकर नही पंहुचा  लेकिन सब  को मेरे हालात का अंदाजा हे  की मैं चाह  कर  भी  इतनी बड़ी  रकम अदा नही कर  सकता । सुबह से शाम  हो गयी  लेकिन कही  से कोई उम्मीद नही दिखी  कई  बार सोचा  कही  चोरी  कर लू  लेकिन ख्याल आया  की अगर पकड़  गया  और अख़बार में फोटो आ  गयी  तो अब तक  तो लाचार और मजबूर पिता था लेकिन अब एक चोर  पिता बन  जाऊंगा यही  सोच  कर  मैं सड़क किनारे पड़ी  एक कुर्सी पर  बैठ  गया ।


अंधेरा  हो चला  था । मेरे कदम  खाली हाथ  घर  की और नही बढ़ रहे  थे  मुझमे  हिम्मत नही थी  अपने बेटे का सामना करने की उसका मुरझाया  और उदास चेहरा  देखने  की।


तभी  मेने देखा  सामने से एक गाड़ी आ  रही  थी  जिसमे बैठा  शख्स  अच्छे घर  का लग  रहा  था । मैं वहा  से उठा  और जैसे ही वो गाड़ी मेरे पास आयी मैं जान बूझ कर  उससे टकरा गया ।

मेरी किस्मत अच्छी थी  वो आदमी  नशे में था  जिसने डर कर  मुझे  वहा  सड़क  से उठाया  और अस्पताल ले आया  जहाँ उसने मेरी मरहम पट्टी करवाई  और ये पैसे देकर चला  गया  ताकि मैं पुलिस को कुछ नही बताऊ।

बस  इस तरह  वो पैसे मुझे  मिल गए  और मैं घर  आ  गया ।


आसिया  ये सुन रोने लगी  और बोली " आपको कुछ  हो जाता तब , तब  हम  दोनों क्या करते  "

कुछ  नही होता हे , कोई दूसरा  रास्ता भी  तो नही था  औलाद  की ख़ुशी के खातिर  करना पड़ा  मुझमे  हिम्मत नही थी  अपने बेटे का सामना करने की मैं अपने आप  को बेहद  नाकारा बाप समझ  रहा  था  जो अपने बच्चे  की छोटी  सी ख्वाहिश  भी  पूरी  नही कर  सकता और वैसे भी मुझे  कुछ  नही हुआ मैं ठीक  हूँ तुम बताओ तोसीफ  खुश  तो हे  की कल  उसे उसका पसंदीदा  खिलौना  मिल जाएगा उसकी ख़ुशी के आगे  मेरी ये चोट  कुछ  भी नही


आसिया  कुछ  कहती  तभी  बाहर खड़ा  अपने पिता की बाते सुन रहा  तोसीफ  जो ये पूछने  आया  था  की कल  किस समय  जाएगा वो साइकिल खरीदने  लेकिन सब  बाते सुन ली उसने और बोला " पापा ये सब  आपने  मेरे लिए  किया, अपने आप  को खतरे  में डाल दिया ताकि मैं खुश  हो सकूँ नही पापा मेरी ख़ुशी  उस खिलोने में नही आप  दोनों में हे  अगर मेरी वजह  से आज  आपको कुछ  हो जाता तो मैं अपने आप  को कभी  माफ नही कर  सकता  था , पापा आप  ही मेरा सब  कुछ  हो मुझे  नही चाहिए  वो खिलौना  जो मेरे पापा का सुकून  ख़राब  कर  दे और उन्हें जख़्मी  कर  दे "


ये कह  कर  वो अपने पिता के सीने से जा लगा  और रोने लगा । अरबाज़ ने भी  उसे सीने  से लगाया  और उसका कई  बार माथा  चूमा । आसिया  ये देख  खुश  हो रही  थी  और बोली एक बाप अपनी औलाद  के लिए  कुछ  भी  कर  सकता  हे  सच में पिता का साया औलाद  के लिए  सबसे  बड़ी  दौलत हे  अगर वो समझें  तब 


प्रतियोगिता हेतु लिखी कहानी 




   17
9 Comments

Seema Priyadarshini sahay

22-Jun-2022 11:52 AM

बहुत खूबसूरत

Reply

Punam verma

20-Jun-2022 11:18 AM

Nice

Reply

Shrishti pandey

20-Jun-2022 10:24 AM

Nice

Reply